नित्यानन्द मण्डल [Nityanand Mandal] राजर्षि जनकक राजकुमारी भऽ जनकपुरक दरबारमे पलल–बढ़ल सीता, वास्तवमे समग्र मिथिलाक बेटी छथि। ओ पृथ्वी स्वरुपा छथि। राजा स्वयं किसान भऽ हर जोतने क्रियाक प्रसङ्ग सीताक जन्मक महात्म्यकेँ आओर महान बनबैत अछि। शासककेँ माटिसँ जोड़ने अइँ कथामे अन्तरनिहित अर्थ–राजनीतिक सन्देश बिसरऽवला सब सनैः सनैः इतिहासक पान्नामे बिलिन भऽ जाइछ, मुदा जनजीवनसँ जुडल पात्रसभ हजारौं वर्षधरि जनजीवन एवं लोकजीवनमे विद्यमान रहैछ।
समयक क्रूरतासँ संस्कृति सेहो अछुत नइँ रहि सकैत अछि। मिथिलाक महत्ता स्थापित होबए नइँ सकबाक दोसर प्रमुख कारण अइँ क्षेत्रक अर्थ–राजनीतिक विसङ्गति सेहो छै। इतिहासक एकटा कालखण्डमे मिथिलाक बेटी नेपाल अधिराज्यक महारानी समेत भेल, मुदा काठमाण्डुमे राणासभक उदय भेल पश्चात जनकपुरक्षेत्र शाह, राणाशासकक कोपभाजनक दुर्दशाक दंशसँ अखनो मूक्त नइँ भऽ पाओल अछि। मुलुकक अन्य ठामपर कएल गेल सार्वजनिक लगानीक दशांश सेहो जनकपुर नइँ पाबिऽ सकल अछि।
सीमा ओहि पार दिल्ली दरबारक लेल सेहो मिथिला क्षेत्र कहियो महत्वपूर्ण नइँ भऽ सकल किएक सत्ता संस्कृतिसँ बेसी शक्तिकेँ महत्व दैत छै, जानकी अयोध्या गेलाक बाद हुनक नैहरक श्री जेना हेराऽ गेल होइक। कहल जाइछ जे संस्कृति कतबो जीवन्त भेला पर सेहो ओकर प्रभुता कायम रखबाक लेल कोनो ने कोनो दरबार धरि पहुँच होएबाक आवश्यक अछि। यद्धपि भक्तक मनोकामना पूरा होयबाक व्यापक जनविश्वासक कारण एखन धरि सेहो लाखों श्रद्धालुसभकेँ जनकपुर आकर्षित करैछ।
संस्कृति समग्रमे आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक एवं बाह्य सम्बन्धसँ निरन्तर निर्माण होइत रहैछ। सायद, तेँ भऽ सकैछ जे संस्कृति जोगएबाक बातो समेत एकप्रकारक कल्पना पर आधारित पूनर्निर्माणक अभ्यास अछि। मूलतः कृषि एवं धर्म पर चलऽवला जीवनशैली क्रमशः राज्यनिर्देशित विकास, उद्यम एवं विप्रेषणसँ सञ्चालित होबऽ लागल। पछाति, संस्कृति ओकर प्रभावसँ मुक्त रहि सकबाक बात नइँ भेल। पावनि–तिहारक सौम्यता सनैः सनैः देखावटी ओ भव्यतामे परिवर्तित होबए लागल अछि।
रामनवमीक सट्टा चैती छठि वा चैती दसैं महत्वपूर्ण बनैत जाएब संस्कृति रूपान्तरणक स्वाभाविक गति अछि। ओकरा सरापबाक वा सराहना कएल जा सकैछ, मुदा रोकब कदापि सम्भव नइँ। घडीक सुइया नियति बाहेक आओर केओ उल्टा नइँ घुमाइब सकैछ। तेँ विगतकेँ पूनः दोहराएब सेहो आवश्यक नइँ।
मुलुकक आन भू–भागमे सेहो विकासक विकृति जनमतसंग्रह घोषणा पश्चात देखल जाइछ। अनाधिकृत आयात–निर्यात, सरपट्ट जङ्गल कटानी एवं राज्य प्रवर्दि्धत भ्रष्टाचारक कारण सहरक क्षमतासँ बेसी लगानी लगाओल जाइ लागल। जमीनक मोल आकाश छुवए लागल। फलतः सार्वजनिक जमीन अतिक्रमित होवए लागल। मठ, मन्दिर एवं गुठीक जग्गासभ पर पञ्च–कर्मचारी–अपराधी गठजोड़सभक कुदृष्टि पड़ल। आ, सहर उठहि नइँ सकबाक जेना थलि रहल अछि।
न गढ़ (सैनिक छाउनी) न पुर (सुन्दर बस्ती), जनकपुर सनैः सनैः नगर (सभ्य नागरिकसभक बास) वा सहर (प्रभाव क्षेत्रकेँ सेवा देबऽ वला बजार) रूपी पहिचान समेत गुमएबाक अवस्थामे पहुँच रहल अछि। नगरबासीसभ अपन इतिहासक बखानमे आओर मस्त देखबामे अबैत अछि। भविष्यबारेमे सोचबाक लेल वर्तमानमे मन्थन करब आवश्यक होइछ। आ ओ यदि असम्भव बुझाए तऽ नियतिकेँ सरापबाक बाहेक, आश्चर्यक बात की ?
जनकपुर एखनो हिन्दु आस्थाक केन्द्र अछि, ओ मात्रे नौलखा मन्दिरक कारण नइँ। धर्मस्थलमे कोनो अमूक स्थानक महत्व होइछ। पशुपतिनाथ होइ आ की माईस्थान, शिव एवं शक्तिस्थलसभक कारण पावन मानल जाइछ। धामक हावा, पानि आ माटि सेहो पवित्र होइछ। जाहिठाम पएर रखलासँ मात्रे तीर्थाटन मानल जाइछ, मन्दिरमे दर्शन करहि परत से आवश्यक नइँ। जनकपुर धाम अछि…!