Story

तिरिया–चरित्र – बोध कथा

ई बहुत पहिलुके जुग–जमानाके खिस्सा, खेरहा अइ ।
एकदिन एकटा अन्तहिया बटोहीे हरले–खगले, पाइनक पियासे इनारपर गेल । ओइ इनारपर एगो अधबयसु पइनभरनी पाइन भरैत रहए । निमने नाहित उ बटोही, ओइ पइनभरनीस’ पिय ला पाइन मङलक । बड बढि़या, बड नीक बात, उ ओइ बटोहीके, डोलमे पाइन भइरक’ पिया देलकै । पाइन पीक’ उ बटोही जुडा, अघा गेल ।

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एमहर–ओमहर ताकि, चकुवाक’ उ बटोही, ओइ पइनभरनीके धकचुकाइते पुछलकै— हे, ऐ ! तिरिया चलित्तर की होइछै ? से, कैनका हमरा बता दू !
उ पनिभरनी बड खेलल–खेलाइर, चुस्त–दुरुस्त रहए । से, उ एकरा खूब ठिकिया हिटियाक’ मुस्कियाइते तकलक आ लागल जोर–जोरस’ हल्ला कर’— हौ, लोकसब हौ ! हौ, दौगै जाइजा हौ ! हौ, के्हुना हमरा बचाब’ हौ !

आब ला’, ई बटोही ततिकाल पडि़ गेल ओइ मौगियाके फेरी–फन्नमे । अकचकाएल, डरे डेराएल, उ ओकरास’ मुलकनके निहोरा मिनती कर’ लागल— जा रे जा, हे ई तों की कएला ? हम त’ तोरा की पुटलियो, आ तों हमरा की बुझला !

—अहां देखैत रहियौ, हम अहांके तिरिए चलित्तर देखबै छी ।
— हम त’ नीके मनस’, खाली जान’–बूझ’ ला, तोरा कहलियो जे तिरिया चलित्तर देखा दा’ ! लोके हल्ला क’क’, तो त’ हमरा सब करम करा देबा ।
ओकर हो–हल्ला सुनिक’, चौगीर्दक जत्त’–तत्त’ स’, लोकसुन दौड़ल ढङर’ लागल ।

उ जनानी, ओकर भलमनसी बूझि, हब्बर–दोब्बर सौंसे घैलाके पाइन अपना देहपर उझइल लेलक ।
ताबतमे लोकोसब दौड़ल आएल आ अबिते ओकरास’ पुछलक— की भेलै ? केकरा की भेलै जे अहां हल्ला कइलीय’ ?

बटोही त’ ओइ जनीके किरदानी देखक’, डरे सकदम रहए ।
उ जनी ओइ बटोहीके देखाक’ कहलक— एह, ह’ ! की कहू । हम त’ ऐ इनारेमे खइस पड़ल छलीग’ ! धनके ई अनतहिया बटोही । ईहे हमरा ऐ इनारमेस’ निकाइलक’ जान बचा देलक !
लोकोसब ओइ बटोहीके बड प्रशंसा कएलक आ ओकरा धन्यवाद दैत, अपन–अपन घर गेल ।

परमेश्वर कापड़ि

प्रमेश्वर कापड़ि, मैथिलीक लोक शैली तथा जनभाषामे लिखबाक लेल प्रख्यात साहित्यकार तथा लेखक छथि। हिनक दर्जनसँ उपर कृतिसभ प्रकाशित अछि। आइ लभ मिथिलाक अतिथि लेखक।