Poem

स्वामी शैलेन्द्रक दूगोट मैथिली कविता

१. सर्वस्वीकार

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तोँ होश कर तोँ होश कर, अबोधके बोध तोँ
क्षुद्र सार अहम् विस्तार कामके रूप तोँ

पल-पल हरेक पल विष अग्निके आहार तोँ
साँस उधार देह असार अनिश्चितके धार तोँ
लक्ष्य तेज प्रचण्ड वेग सुन कालके उपहास तोँ
तोँ होश कर तोँ होश कर अबोधके बोध तोँ

ई पथ ई तोहर राजपथ एकर स्रष्टा सृजनहार तोँ
ई प्रिय पथ चक्रपथके साधन आओर साध्य तोँ
श्रम कर नियोग कर विवेक दृष्टि अपने आपपर
मुक्त जीवन यदा सर्वदा एहि नवीन मार्गपर
तोँ होश कर तोँ होश कर अबोधके बोध तोँ

रुक ठहर देख तोँ बुद्ध पूर्ण बोधपर
हरेक क्षण अनेक लेत विश्राम मृत्युके पड़ावपर
ओशो कहै शैल सुन कर सर्वकेँ स्वीकार तोँ
मुक्त तोँ बन्ध तोँ मुक्त-बन्ध बन्ध-मुक्त तोँ
तोँ होश कर तोँ होश कर अबोधके बोध तोँ

२. अन्त

अन्त ककर कहिया टरलैए, करै छी प्रतीक्षा नयन उघार
कत’ कखन आओर कोना, किछ नइ जानै छी नियतिक चाल
प्रीत मीत नेह बन्धनसभ, नित नाचैए टेढ़ मेढ़ ताल
लाख जतन क’ मान बढ़ेलौँ, चित्तपट मर्दन हुनकर सार
साँस आश काँपि रहल, ढहैत देखि बड़का पहाड़क हाल
अन्त ककर कहिया टरलैए, करै छी प्रतीक्षा नयन उघार

कर्ता छलौँ वा आङुरक कठपुतली, संदेहक उठल तेज ज्वार
निकट घड़ी जोड़-निचोड़के, कृत्य भावक कारी पोथीक कहार
स्मृति अनगिनत ताजा भ’ रहल, काश सुधारि पबितौँ बीतल साल
बनिक’ पंगु दीन क्षीण आब, निहारी पंचक विसर्जन काल
अन्त ककर कहिया टरलैए, करै छी प्रतीक्षा नयन उघार

देखाइए दूर धुंधलका जोत, मोन झाँकि रहल अन्हारक ओट
सुनल बिसरल दाइके धरम पेहानी,टिमटिम चमकैए दूर दराज
बुझलौँ अहाँबिनु पात ने हिलै, खुजि रहल ई रहस्य कमाल
थाकल शैल चाहैए समर्पण, धरू समर्पण बनाउ दासक बोध प्रगाढ़
अन्त ककर कहिया टरलैए, करै छी प्रतीक्षा नयन उघार

■ कवि : स्वामी शैलेन्द्र
■ पता : लहान, सिरहा

विद्यानन्द बेदर्दी

Vidyanand Bedardi (Saptari, Rajbiraj) is Founder member of I Love Mithila Media & Music Maithili App, Secretary of MILAF Nepal. Beside it, He is Lyricist, Poet, Anchor & Cultural Activist & awarded by Bisitha Abhiyanta Samman 2017, Maithili Sewi Samman 2022 & National Inclusive Music Award 2023. Email : [email protected]

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