वेद ….भगवानके वाणी / ज्ञान, जे प्राचीन कालमे भगवान ब्रह्मासँ ऋषि लोकनि प्राप्त कयने छलाह। ई दिव्यज्ञान श्लोकक रूपमे छल, जकर कारण एहिमे कोनो परिवर्तन नइँ भेल। एहि दिव्यस्रोतकेँ कारण ई धर्मकेँ सबसँ महत्वपूर्ण स्रोत मानल जाइत अछि। ई सब परम-ब्रह्म परमात्मा द्वारा प्राचीन ऋषि लोकनिकेँ ध्यान करैत काल हृदयमे कहल गेल छल। मतलब श्रुति भगवान्-लिखित अछि। ई व्यक्तिगत रूपसँ भगवानक आवाज थिक।
शतपथ ब्राह्मणक श्लोकक अनुसार अग्नि, वायु, आदित्य आओर ऋषि अंगिरा तपस्या कए कऽ ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद ओ अथर्ववेदकेँ प्राप्त कयलनि। पहिल तीन वेद अग्नि, वायु, सूर्य (आदित्य) सँ जुड़ल अछि, आ संभवतः अथर्वदेवक उत्पत्ति अंगिरासँ भेल मानल जाइत अछि। एक शास्त्रक अनुसार वेदक उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा जी केऽ चारि मुखसँ भेल अछि।
भारतक पुणे केऽ ‘भंडारकर प्राच्य शोध संस्थान’ मे वेदक २८ हजार पाण्डुलिपि रखल गेल अछि। एहिमे सँ ऋग्वेदक ३० टा पाण्डुलिपि बहुत महत्वपूर्ण अछि, जे यूनेस्कोक धरोहर सूचीमे शामिल कयल गेल अछि। यूनेस्को ऋग्वेद १८०० सँ १५०० ईसा पूर्वक सांस्कृतिक धरोहरक सूचीमे ३० टा पाण्डुलिपि शामिल कएल गेल अछि। उल्लेखनीय अछि की भारत केरऽ महत्वपूर्ण पाण्डुलिपिक सूची यूनेस्को केरऽ १५८ टा सूचीमे ३८ छैक।
*१.ऋग्वेद:*
रिक मतलब शर्त आ ज्ञान। ऋग्वेद प्रथम वेद अछि जे काव्यात्मक अछि। एकर १० मण्डल (अध्याय) मे १०२८ सूक्त अछि, जाहिमे १०६२७ मंत्र अछि, मंत्रमे देवताक स्तुति भेल अछि। एहिमे यज्ञमे देवताक आह्वान करबाक मंत्र अछि। ई पहिल वेद अछि। इतिहासकार ऋग्वेदकेँ भारत-यूरोपीय भाषा परिवार केरऽ पहिल उपलब्ध कृतिमे सँ एक मानैत छथि। ऋग्वेद विश्वक प्रथम शास्त्र थीक।
ऋग्वेदमे ३३ टा देवी-देवताक उल्लेख अछि। सूर्य, उषा आ अदिति सन देवीक वर्णन एहि वेदमे कयल गेल अछि। एहिमे अग्निक आशीर्ष, अपद, घृतमुख, घृत पेज, घृत-लोम, आर्किलोम आ वभ्रलोम कहल गेल अछि। निर्गुण ब्रह्मक वर्णन ऋग्वेदक नासदिया सूक्तमे अछि।
एहि वेदमे आर्यक निवास स्थानक लेल सर्वत्र ‘सप्त सिन्धवाह’ शब्दक प्रयोग कयल गेल अछि। आ जे आर्य नहि छलाह हुनका अनार्य कहल गेल अछि। एहिमे किछु अनार्यक नाम जेना – पिसाक, सेमिया आदिक उल्लेख कयल गेल अछि। एहिमे गैर-आर्य लोकनिकेँ ‘अव्रत’(व्रतक अपालक), ‘मृद्धवाच’(अस्पष्ट वाणी बजनिहार), ‘अनस’(सपाट नाकबला) केरऽ रूपमे वर्णित कयल गेल अछि।
ऋग्वेदक २१ शाखाक वर्णन अछि, जाहिमे सँ मात्र पाँच टा चरणव्यूह ग्रंथक अनुसार प्रमुख अछि –
१. शकल
२. वाष्कल
३. अश्वलायन
४. शङ्खयन, एवं
५. मंडुकायन।
एकर बहुत सम्बन्ध भौगोलिक स्थिति आओर देवता केरऽ आह्वान करहिवला मंत्रसँ छै। ऋग्वेदक स्तोत्रमे प्रार्थना, देवताक स्तुति आ आकाशीय जगतमे हुनकर स्थितिक वर्णन अछि। एहिमे जल चिकित्सा, वायु चिकित्सा, सौर चिकित्सा, मानसिक चिकित्सा आ हवन आदिकेँ माध्यमसँ उपचारक बारेमे सेहो जानकारी देल गेल अछि। औषधि सूक्त अर्थात औषधिक उल्लेख ऋग्वेदक दसम मण्डलमे भेटैत अछि। एहिमे दवाईक संख्या लगभग १२५ बताओल जा रहल अछि, जे १०७ ठाम भेटैत अछि। चिकित्सामे सोमक विशेष वर्णन अछि। च्यवनऋषिके कायाकल्पक कथा ऋग्वेदमे सेहो मिलैत अछि।
*२. यजुर्वेद:*
यजुर्वेदक अर्थ: यात+जू = यजु। ‘यात’ अर्थात चलैत, आ ‘जू’ अर्थात आकाश। एकर अतिरिक्त कर्म। उत्तम कार्यक लेल प्रेरणा।
यजुर्वेदमे यज्ञक विधि आ यज्ञमे प्रयुक्त मंत्र अछि। यज्ञक अतिरिक्त तत्वज्ञानक वर्णन सेहो अछि। तत्व ज्ञानक अर्थ रहस्यमय ज्ञान। ब्रह्म, आत्मा, ईश्वर एवं पदार्थक ज्ञान। ई वेद गद्यमे अछि। एहिमे यज्ञक वास्तविक प्रक्रियाक गद्य मंत्र अछि। एहि वेदक दू शाखा शुक्ल आ कृष्ण अछि।
कृष्ण: वैशम्पायन मुनि कृष्णसँ सम्बन्धित छथि। कृष्णक चारिटा शाखा अछि।
शुक्ल: ऋषि याज्ञवल्क्य शुक्लसँ सम्बन्धित छथि। शुक्लक दू टा शाखा अछि। एहिमे ४० अध्याय अछि। छब्रिहिधन्यासक वर्णन यजुर्वेदक एकटा मंत्रमे भेटैत अछि। एकर अलावा दिव्या वैद्य आओर कृषि विज्ञान केरऽ विषय सेहो एही वेदमे उपलब्ध अछि।
यजुर्वेदध्यायी परम्परामे दू सम्प्रदाय प्रमुख अछि – ब्रह्म सम्प्रदाय या कृष्ण यजुर्वेद आ आदित्य सम्प्रदाय या शुक्ल यजुर्वेद। वर्तमानमे कृष्ण यजुर्वेदक शाखामे मात्र ४ टा संहिता उपलब्ध अछि – तैत्तिरीय, मैत्रायणी, काठ आ कपिष्टल कथा। शुक्ल यजुर्वेदक शाखामे मुख्य दू टा संहिता अछि – १. मध्याह्न संहिता आ २. एखन केवल कानवा संहिता उपलब्ध अछि।
कहल जाय छै की वेद व्यास केरऽ शिष्य वैशम्पायन केरऽ २७ शिष्य छलनि, जाहिमे सबसँ प्रतिभाशाली याज्ञवल्क्य छलखीन। एक बेर यज्ञक समय अपन सङ्गी लोकनिक अज्ञानतासँ क्रोधित भऽ गेल छलाह। एहि विवादकेँ देखि वैशम्पायन याज्ञवल्क्यकेँ अपन सिखाओल ज्ञान फिर्ता करबाक लेल कहलनि। एहि पर क्रोधित याज्ञवल्क्य यजुर्वेदक उल्टी(वमन)कऽ देलखिन – ज्ञानक कण कृष्ण वर्णक रक्तसँ दाग लागल छल। एहिसँ कृष्ण यजुर्वेदक जन्म भेल। ई देखि आन शिष्य लोकनि तीतरक भेषमे बैसि ओहि दाना सभकेँ चुगलनि आ एहिसँ तैत्तिरीय संहिताक जन्म भेल।
*३. सामवेद:*
सामाक अर्थ होइत अछि परिवर्तन आ संगीत। सौम्यता आ पूजा। एहि वेदमे ऋग्वेदक स्तोत्रक संगीत रूप अछि। संवेद गीतात्मक अर्थात गीतक रूपमे अछि। ई वेद संगीत विज्ञानक उत्पत्ति मानल जाइत अछि।
१८२४ क मंत्र केँ एहि वेदमे ७५ मंत्रकेँ छोड़ि बाँकी सब मंत्र ऋग्वेदसँ लेल गेल अछि, एहिमे सविता, अग्नि आ इन्द्र देवताक उल्लेख अछि। एकर मुख्यतः ३ शाखा, ७५ ऋचा अछि। संवेद छोट रहितो एक तरहेँ सभ वेदक सार अछि आ सभ वेदक चुनल भाग एहिमे शामिल कयल गेल अछि।
सामवेदक महत्व एहि बातसँ बुझना जा सकैत अछि जे गीतामे कहल गेल अछि जे – ‘वेदनान सामवेदोस्मि।’
महाभारत मे गीताक अलावा अनुशासन पर्व – संवेदश् वेदनाम यजुशन शत्रुद्रियम् मे सेहो संवेदक महत्व देखाओल गेल अछि। अग्निपुराणक अनुसार सामवेदक विभिन्न मंत्रकेँ विधिवत जप कयलासँ रोगसँ मुक्त भऽ सकैत अछि आ उद्धार भऽ सकैत अछि, आ अपन इच्छा पूरा भऽ सकैत अछि। ज्ञान योग, कर्म योग एवं भक्ति योगक त्रिमूर्ति अछि संवेद। ऋषि लोकनि विशिष्ट मंत्रक संकलन कए गायन पद्धतिक विकास कयलनि। आधुनिक विद्वान लोकनि सेहो एहि तथ्यकेँ स्वीकार करऽ लगलाह जे सबटा स्वर, ताल, लय, तुक, गति, मंत्र, स्वर चिकित्सा, राग, नृत्य, मुद्रा, अभिव्यक्ति आदि केवल संवेद सँ निकलल अछि।
एहन मंत्र संवेदमे भेटैत अछि, जे सिद्ध करैत अछि जे वैदिक ऋषि लोकनिकेँ एहन वैज्ञानिक सत्यक ज्ञान छलनि। जेकर जानकारी आधुनिक वैज्ञानिक लोकनिकेँ हजारो शताब्दीक बाद प्राप्त भेलनि।
जेना – इन्द्र धरतीकेँ घुमाबैत रखने छथि। (अर्थात हुनका लोकनिकेँ बुझल छलनि जे पृथ्वी घूमि रहल अछि।)
सूर्यक किरण चन्द्रमाक गोलामे विलीन भऽ ओकरा प्रकाशित करैत अछि। (मतलब चन्द्रमाक अपन प्रकाश नहि होइत छैक।)
*४. अथर्ववेद:*
‘थर्वाक’ अर्थ होइत अछि स्पन्दन आ अथर्वक अर्थ अस्पन्दन। ज्ञानक माध्यमसँ उत्तम कर्म करैत भगवानक पूजामे लीन रहयवला मात्र अटल बुद्धिक प्राप्तिसँ मोक्ष प्राप्त करैत अछि। एहि वेदमे रहस्यमयी ज्ञान, जड़ी-बूटी, चमत्कारी आयुर्वेद आदिक उल्लेख अछि। एकर २० अध्यायमे ५६८७ मंत्र अछि। एकर आठ खण्ड अछि, जाहिमे भेषज वेद आ धातु वेद दूनू नाम भेटैत अछि।
अथर्ववेदक भाषा आ रूपक आधार पर ई मानल जाइत अछि, जे एहि वेदक रचना अन्तिम बेर भेल छल। आयुर्वेदमे विश्वास अथर्ववेदसँ शुरू भेल। अथर्ववेदमे अनेक प्रकारक चिकित्सा पद्धतिक वर्णन अछि। अथर्ववेदमे गृहस्थश्रमक भीतर पति-पत्नीक कर्तव्य आ विवाहक नियम आ मानदण्डक उत्तम व्याख्या अछि। अथर्ववेदमे ब्रह्माजीक पूजासँ जुड़ल अनेक मंत्र अछि। भगवान पहिने अथर्ववेदक ज्ञान महर्षि अंगिराकेँ देलनि, तखन महर्षि अंगिरा ओहि ज्ञानकेँ ब्रह्माकेँ देलनि।
*नोट:* – वेद सम्बन्धि ई लेख बहुत संक्षिप्त अछि, एहिमे विस्तारक असिम सम्भावना अछि। श्रुतिमे चारि टा वेद अछि – ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद आ अथर्ववेद। प्रत्येक वेदक चारि भाग होइत अछि: संहिता, ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक आ उपनिषद। एहि सभक अलावा अन्य सब हिन्दू शास्त्र स्मृतिक अन्तर्गत अबैत अछि। श्रुति आ स्मृतिमे जँ कोनो विवाद हो तऽ मात्र श्रुतिकेँ मान्यता भेटैत छैक, स्मृतिक नहि। ‘श्रुति’ ब्रह्मा द्वारा निर्मित अछि। ब्रह्मा ब्रह्माण्डक नियंत्रक होयबाक कारणेँ हुनक मुँहसँ निकलयवला शब्द पूर्णतः प्रामाणिक अछि आ प्रत्येक नियमक मूल स्रोत थिक।
■ लेखक परिचय:
श्यामानन्द ठाकुर विराटनगर निवासी छथि। स्नातकोत्तर धरि अध्ययन कयने ठाकुर, भारतीय बहुराष्ट्रीय संस्थान, नेपालक प्रमुखक रूपमे कार्यरत छलथि। अवकाश प्राप्त ई लेखक २/३ सालसँ मैथिलीमे कलम चला रहल छथि, पहिने ओ हिन्दीमे लिखैत छलाह। मुदा बादमे अपन मातृभाषा, साहित्य, संस्कृति, परम्परासभक संरक्षण, सम्वर्द्धन, प्रचार-प्रसार ओ विकासक लेल मैथिलीमे लिखैत आबि रहल छथि।