भरदुतिया : मिथिलाक भ्रातृ-स्नेहक पर्व

दियाबातीक पाँच दिनक श्रृंखलामे जे पर्व भाइ-बहिनक पवित्र स्नेहक प्रतीकके रूपमे मनाओल जाइत अछि, ओ अछि — भरदुतिया। मिथिलाक्षेत्रमे एहि दिनक भावना, परम्परा आ अपनत्त्व विशेष रूपसँ हृदयस्पर्शी अछि ।
शब्दार्थ आ तिथि: “भरदुतिया” शब्द संस्कृत “भ्रातृ द्वितीया”सँ उत्पन्न भेल अछि अर्थात भ्राता (भाइ) आ द्वितीया (दोसर दिन) । मैथिली लोक शैलीमे “भरदुतिया”, “भरद्वितीया” वा हिन्दीमे “भाइ-दूज” सेहो कहल जाइत अछि।
दीपावलीक पाछू जे द्वितीया तिथि पड़ैत अछि, ओहि दिन ई पर्व मनाओल जाइत अछि । मिथिलामे ई दिनकेँ भाइ आ बहिनक मिलन दिवस मानल जाइत अछि। जखन बहिन अपन भाइकेँ आदरपूर्वक बजबैत छथि, ओकर पूजा-आरती करैत छथि, आ ओहि दिन घरक वातावरण स्नेह, आशीर्वाद आ आत्मीयतासँ भरि जाइत अछि ।
यम-यमुनाक प्रसंग: लोकविश्वास अनुसार, एहि दिन यमराज अपन बहिन यमुना (यमि)क घर गेलाह । बहिन हुनका आदरपूर्वक स्नान, तिलक, मिठाइ आ भोजनसँ सत्कार केलनि । यमराज प्रसन्न भ’ कहलनि — “जे बहिन एहि दिन अपन भाइकेँ प्रेमपूर्वक तिलक करैत अछि, ओकर भाइ दीर्घायू, धन-धान्य आ सुख पाओत ।” ओहि समयसँ भरदुतिया मनाओल जाए लागल ।
मिथिलामे भरदुतियाक परम्परा: मिथिलामे भरदुतिया अत्यन्त स्नेह आ पारिवारिक उल्लाससँ मनाओल जाइत अछि। बहिनसभ अपन भाइकेँ घर आमंत्रित करैत छथि । सकाले स्नान-पूजा उपरान्त घरक आँगनमे चउक (चौका) बनाओल जाइत अछि । दूभि, अङ्कुर, चाउर आ दीपकसँ भाइक आरती-तिलक कएल जाइत अछि । भाइकेँ मिठाइ, पान, सुपारी, चूड़ा-दही, मखान आ पकवान अर्पण कएल जाइत अछि । आशीर्वादक रूपमे बहिन भाइक माथपर दूभिक डाला घुमबैत कहैत अछि —
जिबु दुलार, सुख-सम्पत्ति पाबू
यमक कष्ट नइ देखि, दीर्घायू पाबू
भाइ सेहो बहिनकेँ उपहार (वस्त्र, सिन्दूर, मिठाइ, वा अन्य भेट) दैत छथि ।
लोकगीत आ भाव: मिथिलाक लोकगीतसभमे भरदुतियाक भाव अत्यन्त मृदुल अछि । नारीसभ गबैत छथि —
“ए बौआ आयल मोर द्वार, तिलक सजे मोर अँखियनमे प्यार।”
एहि गीतसभ प्रेम, अपनत्व आ पारिवारिक सम्बन्धक ऊष्मा भरैत अछि । ई केवल रीत नहि, एकटा भावनात्मक मिलनक क्षण अछि ।
सामाजिक आ सांस्कृतिक सन्देश: भरदुतिया समाजकें सिखबैत अछि —
“परिवारमे स्नेह आ सम्मानक डोर जतेक मजबूत रहत, समाज ओतबे प्रगतिशील बनत ।”
ई पर्व भाइ आ बहिनक सम्बन्धमे विश्वास, रक्षा आ पारस्परिक जिम्मेदारीक भावना जगबैत अछि । एहि दिन बहिन अपन भाइकेँ केवल दीर्घायु नहि, बल्कि सदाचार, न्याय आ सच्चाइपर चलबाक आशीर्वाद दैत अछि ।
निष्कर्ष: भरदुतिया मिथिलाक दीपोत्सव श्रृंखलाक सबसँ स्नेहमय आ भावनात्मक पर्व छी । ई केवल तिलक वा पूजा नहि, बल्कि परिवारक बन्हन, स्नेह आ कृतज्ञताक जीवन्त प्रतीक अछि । एहि दिनक मूल संदेश अछि —
प्रेमक डोर स्नेहसँ बान्हू
अपन जनक संग समरस रहू
भरदुतिया सदा मंगल हो
– सम्पादन : नारायण मधुशाला
( * नोट : भरदुतियाक बहुतरास मैथिली गीतसभ लोक धुन आ मौलिक धुनपर उपलब्ध अछि । म्यूजिक मैथिली app आ maithili.com.np वेबपर जाक’ सुनि सकैत छी । )




