गोवर्धन पूजा आ मिथिला : प्रकृति, श्रद्धा आ लोकसंस्कृतिक संगम

सुकरातीक बाद मिथिला क्षेत्रमे गोवर्धन पूजा होइत अछि । जे “अन्नकूट” नामसँ सेहो परिचित अछि । ई पर्व मिथिलाक धार्मिक, कृषक आ पारिवारिक जीवनसँ गहिर रुपे जुड़ल अछि । जतबे एहि दिनक धार्मिक महत्त्व अछि, ओतबे सामाजिक आ पर्यावरणीय सन्देश सेहो निहित अछि ।
गोवर्धन पूजाक पौराणिक पृष्ठभूमि : गोवर्धन पूजाक मूल कथा श्रीकृष्णसँ सम्बन्धित अछि । मान्यता अनुसार, जखन इन्द्रदेव अहंकारबस मथुरामे वर्षाद्वारा प्रलय अनलाह, तखन श्रीकृष्ण गोवर्धन पर्वत उठाक’ गोकुलवासीसभक रक्षा केलनि । एहि घटनाक स्मरणमे प्रत्येक वर्ष गोवर्धन पूजा मनाओल जाइत अछि । श्रीकृष्णक एहि कार्यक प्रतीकात्मक अर्थ ई मानल जाइत अछि —
“प्रकृति (गोवर्धन) मानवक रक्षक अछि, देव अहंकार नहि, धरतीक सम्मान सर्वोपरि अछि ।”
मिथिलामे गोवर्धन पूजाक स्वरूप : मिथिलामे गोवर्धन पूजा गाम-गाम, टोला-टोलामे अत्यन्त श्रद्धा आ हर्षसँ मनाओल जाइत अछि । एहि दिन घर-घरमे गोवर्धन पर्वतक प्रतीक गोबरसँ बनाओल जाइत अछि, जइकेँ लोक “गोवर्धन बाबा” कहैत छथि ।
गोवर्धनक आकृति बनाब’ लेल गाएक गोबर, माटि, दूभि, फूल, आदिक प्रयाेग कएल जाइत अछि । गोवर्धनक आकृतिक चारो दिसि दीप, फूल, धानक बालि, चूड़ा, दही, घी, मिठाइ, अन्नक विविध पकवान अर्पित होइत अछि — एहि लेल एकरा अन्नकूट पर्व सेहो कहल जाइत अछि ।
अन्नकूट : अन्नक महोत्सव : एहि दिन मिथिलाक घरसभमे “अन्नकूट” भोज बनाओल जाइत अछि । धान कटनीक प्रारम्भक संग ई भोज “नव अन्न”क प्रतीक मानल जाइत अछि । लोकसभ घर-घर “धानक नवका चूड़ा”, “तरकारी”, “दही-घी” आ “मिठाइ” तैयार करैत छथि । किछु ठाम एहि दिन सामूहिक भोज (भोजभात) सेहो होइत अछि, जकरा “गोवर्धन भात” कहल जाइत अछि ।
गाए आ कृषि जीवनक सम्मान : गोवर्धन पूजाक संग मिथिलामे “गौ पूजा” सेहो होइत अछि । गाएकेँ लक्ष्मी रूप मानि ओहिकेँ सजाओल आ माथमे फूल-दूभि देल जाएत अछि । लोकक विश्वास अछि — “जतबा आदर गाएकेँ, ओतबे सुख धरतीपर ।” कृषिप्रधान मिथिला समाजमे ई दिन पशुधन, जल, धरती आ अन्नक सम्मानक पर्व अछि । ई लोककेँ सिखबैत अछि जे मानवक समृद्धि प्रकृतिक सन्तुलनसँ जुड़ल अछि ।
लोकगीत आ परंपरा : मिथिलामे गोवर्धन पूजाक अवसरपर महिला आ पुरुषसभ गीत गबैत छथि — “गोवर्धन बाबा, गोकुलके रक्षक आओ घर आँगन सुख बरसाबू ।”
बालकसभ गोवर्धनक आकृतिक चारू ओर दीप घुमबैत खेलक रूपमे पूजाक आनन्द उठबैत अछि । कतेको ठाम गोवर्धनक चारूदिस गोधनक परिक्रमा सेहो करल जाइत अछि ।
पर्यावरणीय सन्देश : गोवर्धन पूजाक पर्यावरणीय दृष्टिकोण अद्भुत अछि । ई पर्व बतबैत अछि — “धरती, जल, वनस्पति, पशु — सभ जीवनक आधार अछि ।” गोबर, माटि, दूभि आ अन्नक प्रयोगसँ ई परम्परा पर्यावरण-सम्मत जीवनशैलीक प्रतीक बनल अछि ।
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निष्कर्ष : मिथिलामे गोवर्धन पूजा केवल धार्मिक कर्मकाण्ड नहि, बल्कि जीवन, प्रकृति आ कृतज्ञताक उत्सव अछि । ई लोककेँ सिखबैत अछि जे असली पूजा प्रकृतिकेँ सम्मान करबामे अछि । ई पर्व मिथिलाक लोकजीवनमे अमर संदेश दक’ जाइत अछि — “गोवर्धन जकाँ धरती उठाबू, गोकुलकेँ जकाँ प्रकृतिसँ प्रेम करु ।”
– सम्पादन : नारायण मधुशाला



