Poem

तीन धरतीक सुगन्ध : विद्यानन्द बेदर्दी

उत्तरदिस

चानीक घोघ तरसँ हुलकैत

चन्द्रमा सन शान्त

मुदा आत्म–सम्मानसँ ज्वलन्त —

‘हिमाल’

गाबि रहल अछि सर्वोच्च स्वभिमानक गीत।

बीचमे ‘पहाड़’,

पसिना आ पीड़ामे

जत’ स्निग्ध बहि रहल अछि जीवन।

दक्षिणदिस

अन्नपूर्ण धरती ‘मिथिला’,

जत’ सोनसन धानक बालि

सूर्यक स्पर्श पाबि मुस्किया रहल अछि।

आ हम त्रियुगा नदीक कछेरपर बसि,

ई तीनुटा दृश्यमे लीन भ’

लिखि रहल छी एकटा कविता ।

 

साँझ एना पड़ि रहल अछि —

जेना प्रकाश आ अन्हार

एक–दोसरकेँ तानि रहल अछि।

मुदा ई वियोग नइ,

संसारके सन्तुलनमे राख’ वला

शाश्वत प्रेम छियै।

सूर्य डुबि रहल अछि —

मुदा ओ पानिमे अपन प्रतिविम्ब पारि रहल अछि।

चन्द्रमे उगि रहल अछि —

मुदा ओ अखनो सूर्यक इजोत तापि रहल अछि।

 

हम सोचि रहल छी —

एक–दोसरकेँ हमसभ किएक नइँ स्विकारि सकल छी?

जेना सूर्य डुबैत काल

अपन इजोत चन्द्रमाकेँ सोँपैत अछि,

चन्द्रमे अन्हारक आलिङ्गनमे बसि

इजोत परसैत अछि।

ई देश सेहो ओहने भ सकैत अछि,

जखन

हिमाल मिथिलाक पसिनाकेँ,

मिथिला हिमालक शीतलताकेँ महशुस करत

आ पहाड़ दुनू बीचक सेतू बनि

ठाढ़ रहत।

 

हिमालक हिम पिघलि

पहाड़क छातीसँ टकड़ाक’,

जननी मिथिलाक चरण पखारि

बह’ वला नदी आइ नोर बहाबैत

हमरा सिखा रहल अछि —

एकता

कोनो पार्टीक विज्ञापन–रूपी

स्वार्थक नारासँ नइ,

सह–अस्तित्वक बोधसँ जनमैत अछि।

हे! देशक मानव–बन्धु,

अहाँ कोना बिसरि जाइत छी,

सूर्य–चन्द्रमा एकेटा आकाशमे

बेरा–बेरी उगैत अछि,

डुबैत अछि।

हम–अहाँ कोना सोचि लैत छी जेँ

मिथिला आ पहाड़ दुनूक हृदय अलग अछि?

देखियौ —

हम नदीक कछेरसँ

तीनटा रूप देखि रहल छी —

माटि, चट्टान आ हिम।

तीनुक सुगन्ध एकेटा अछि —

नेपाल।

एक दिन,

ई नदीजकाँ देश सेहो बहत,

जखन हम–अहाँ

सूर्य–चन्द्रमाजकाँ

नेपाली आकाशमे

एक–दोसरके प्रकाश साझा कर’ लेल सिखब।

 

* * *

— कवि : विद्यानन्द बेदर्दी

( कवि बेदर्दी ‘तीन धरतीक सुगन्ध’ मैथिली कवितामे नेपालक तीनटा प्रमुख भौगोलिक क्षेत्र—हिमाल, पहाड़, आ मिथिला (तराइ) — क वर्णन करैत राष्ट्रीय एकताक गहीर सन्देश देने छथि।

कवि अपन गामक नदीक कछेरपर बसिक’ उत्तरदिस गौरवमय हिमाल, बीचमे परिश्रमी पहाड़ आ दक्षिणदिस अन्नपूर्ण मिथिलाक सुन्दर दृश्य देखैत छथि आ ई तीनू क्षेत्रक सुगन्ध ‘नेपाल’ एकेटा छियै से महशुस करैत छथि। ओ सूर्य आ चन्द्रमाक उदाहरण दैत छथि जे एकेटा आकाशमे मिलिकऽ एक-दोसरकेँ इजोत दैत अछि आ संसारमे सन्तुलन कायम राखैत अछि। कवि प्रश्न करैत छथि— जँ प्रकृतिमे एहेन शाश्वत प्रेम अछि त हमसभ मनुष्य किएक एक-दोसरकेँ स्वीकार नइ कऽ सकैत छी?

​कविताक मूल सार सह-अस्तित्वक बोधमे निहित अछि। हिमालक हिम पिघलि क’ पहाड़ होइत मिथिलाक चरण पखार’ वला नदी जेना सिखबैत अछि ओहिना एकता कोनो राजनैतिक नारा वा स्वार्थसँ नइ बल्कि आपसी सहयोग आ गहीर आत्मिक सम्बन्धसँ जनमैत अछि। कवि सम्पूर्ण नेपालीकेँ सूर्य-चन्द्रमाजकाँ बनि क’ एक-दोसरक दुःख-सुखमे सहभागी होइ लेल आह्वान करैत छथि। माटि, चट्टान आ हिमजकाँ तीनूक सुगन्ध एकटा भेलाक कारणेँ हिमाल, पहाड़ आ मिथिला (तराइ) क हृदय सेहो फरक नइ अछि आ ओहि सभ मिलिक’ नेपाल बनैत अछि ई कविताक सशक्त सन्देश अछि।

​कवि बेदर्दीक ई कविता हमरा लोकनिकेँ अपन धरतीसँ जुड़ल रहबाक लेल प्रेरित करैत अछि। )

 

विद्यानन्द बेदर्दी

Vidyanand Bedardi (Saptari, Rajbiraj) is Founder member of I Love Mithila Media & Music Maithili App, Former-secretary of MILAF Nepal. Beside it, He is Lyricist, Poet, Anchor & Cultural Activist & awarded by Bisitha Abhiyanta Samman 2017, Maithili Sewi Samman 2022 & National Inclusive Music Award 2023. Email : Vidyanand.bedardi96@gmail.com

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