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सामा-चकेवा, पृष्ठभूमि आ खेल प्रक्रिया

१. परिचय : सामा–चकेवा मिथिलामे मनाएल जाएवला भाइ–बहिनक पावनि अछि। एहि पावनिमे बहिन सभ भाइ सभक लेल दीर्घायु, सु–स्वास्थ्य, समृद्धि, यशोवृद्धि, आदि फल प्राप्तिक लेल कामना आ जे अधलाह लोक माने चुगला अइ तकर पराभव चाहैत छथि ।

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धान धान धान छै
भैया कोठी धान छै
भैया मुंह पान छै
चुगला कोठी भूस्सा छै

दूटा स्पष्ट विम्ब छै – (१) जे नीक, तकरा लेल नीके नीक आ जे अधलाह, तकरा लेल अधलाहे अधलाह (२) जस करनी तस भोगहु ताता… बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला…
हम्मर भैया केना आबए
घोडबा चढ़ल भैया हलसल आबए
मुंहमे पान गलोठने आबए
माथ मुरेठा फहराइत आबए
हाथ गुलेती नचबैत आबए

चुगला भड़ुआ केना आबए
लाठी लेने धान कूटैत आबए
मूंहसँ लेर चुबति आबए
माथपर खापरि औन्हने आबए
मुंहपर कारी पोतने आबए

आहा ! अद्भुत । कल्पना करू जे समाजक सब चुगलाक लेल एहने दुर्दशाक प्रावधान होए । तइँ तऽ ने ? बात बढ़ैत–बढ़ैत कबुला–पातीधरि पहुँच गेलै । बहिन कबुला करैए – भाइ होएत तँ ढोल बजाकऽ सामा खेलाएब । सनेशक रूपमे कतौ–कतौ साथी–सङ्गी आ ननदि–भौजाइबीच सामा सेहो पठाओल जाइत अछि ।

भाइके लेल आतुरताक चरम… एहि आतुरताक कारण, नैहरके वंश बढबऽवला पुरुष कामना तँ ने ? एहि प्रश्नक उत्तर लेल सामाक कथा सुनहिटा पड़त । सामाक दूटा कथा प्रचलित अछि आ ठाम गुने दुनूके अपन–अपन जोड़–तोड़ अछि ।

२. सामा – कथा (ऐतिहासिक पृष्ठभूमि) : सामा–चकेवाक दुनू कथा एहि तरहे अछि –

■ पहिल कथा

सामा–चकेवाक कथा द्वापर युग आ श्रीकृष्णकेँ इंकित करैत अछि । पद्म पुराणक अनुसार श्रीकृष्णकें सोह्र हजार एक सय आठ रानी छल । जेना – रूक्मिणी, सत्यभामा, कालिन्दी, मित्रविन्दा, नाग्नजिति, सुलक्ष्मणा, सुशीला, जाम्बवती, आदि । जाम्बवतीसँ श्रीकृष्णकें दूगोट सन्तान प्राप्त भेल रहए — सामा (पुत्री) आ साम्ब (पुत्र) । दुनू भाइ–बहिनमे अगाध प्रेम छल ।

सामाकें वृंदावनमे घुमनाइ बड़ नीक लगैत छल, कारण एतऽ हुनका ऋषि पुत्र चकेवासँ भेंट–घांट होइत रहैत छल । क्रमशः ई भेंट–घांट प्रेममे परिणत भऽ जाइत अछि । जीवन बेस हलसल–फुलसल बीतऽ लगै छनि । मुदा से चुगलाकें नइ सोहाइ छल, किएक तँ ओ अपने सामासँ विवाह करबाक मनसुब्बा बन्हने रहए । विपरीत बुद्धिक चुगला, श्रीकृष्णके भरैत रहैत छल कान – सामा वृंदावनमे ऋषि कुमार सब संगे अनैतिक काज करैत रहैत छथि । तँए ओ बेसी समय वृंदेवनमे बितबैत छथि । चुगलाक अते बात सुनैत श्रीकृष्ण क्रोधित भऽ जाए छथि, आ सामाके सतीत्वपर शंका कऽ श्राप दऽ दै छथि । बड़े तोँ चिड़इ जकाँ वृंदावनमे फुदकैत रहैत छें, जो चिड़इ बनि जो । सामा चिड़इ बनि जाइए आ वृंदेवनमे रहऽ लगैए । चुगला बड़ प्रसन्न होइत अछि । ओ योजना बनबैए – वृंदावनमे आगि लगेबै आ सामा (चिड़इ) केँ डाहि खसेबै ।

चकेवा, श्रीकृष्ण लग जा सबटा कहानी बतबैत छथि । चकेवा, श्रीकृष्णसँ कहैए जे हम सामा बिन नइ बाँचि सकब । भगवान श्रीकृष्ण कहैत अछि – आब तँ हम श्राप दऽ देलौँ । हम श्राप फिर्ता नइ लऽ सकैछी । चकेवा कहैए जँ तेना छै तँ हमरो समेजकाँ चिड़इ बना दिए। सामाके बिना मनुख जीवन बेकार । श्रीकृष्ण चकेवोकें चिड़इ बना दैए । चकेवा समेक सङ्ग वृंदावनमे रहऽ लगैए । चुगला आओर बेसी प्रसन्न भऽ जाइए । आब चकेवोकेँ समेक सङ्ग डाहि खसेबै ।

एहि घटनाक समय राज्य भ्रमणमे निकलल साम्ब राजधानी घुमिकऽ अबैए। राजधानी घुमिकऽ अएलाबाद सबटा समाचार सुनैत छथि । साम्ब, सामा–चकेवाकेँ निर्दोष सावित करैए । साम्ब, श्रीकृष्णकेँ, सामा–चकेवाकेँ पंक्षी योनीसँ मुक्त कऽ देबाक लेल अनुनय–विनय करैए। श्रीकृष्ण कहैए – आब तँ हम श्राप दऽ देलौँ। हम श्राप फिर्ता नइ लऽ सकैछी । बरू हम अहाँकेँ उपाइ बता सकैत छी । अहाँ कार्तिक शुक्ल द्वितियासँ कार्तिक शुक्ल पूर्णिमाधरि गोपेश्वर महादेवकें तपस्या करू । महादेवे हुन्कासभकेँ श्राप मुक्त कऽ सकैए । साम्ब, गोपेश्वर महादेवकेँ तपस्या करैए। महादेव खुश होइत अछि आ श्राप आपस कऽ देबाक वचन दैत अछि ।

चुगलाकेँ अतबेमे धरफरी लागि जाइए आ ओ झटपटसँ वृंदावनमे आगि लगा दैए। आगिमे गाछ–बिरीछ, पशु–पंक्षी, आदि सब जरऽ लागल आ जरऽ लागल चिड़इ बनल सामा–चकेवा । जङ्गलमे हाहाकार मचि गेल । चुगलाकें आनन्दक ओर नइ रहए ।

साम्बक सोझा बड़ पघि समस्या आबि गेल रहए मुदा ओ तँ शीवजी वचन लइए लेने रहए । ओ आगिकेँ मिझबऽ लागल । आगि मिझाबऽमे वनवासीसब सेहो सङ्ग पुरऽ लागल । अंततः आगि मिझाबैत–मिझाबैत मिझा गेल । श्राप तँ आपस भइए गेल रहए । सामा–चकेवा चिड़इसँ मनुखक योनिमे आपस आबि गेल । भाइ–बहिनमे मिलान भेल । हर्ष–उल्लासमे वृंदावन उबजुब करऽ लागल । चुगला भितरे–भीतर अपने आगिमे जरऽ लागल । साम्ब, श्रीकृष्ण लग चुगलोके भंडाफोडि़ देलक । अन्तमे चुगला मुहमे कारिख–चून पोति, माथ पर खापरि औन्हि, पनहीके माला पहिरा, गदहापर बैसा, सउसे गाम घुमाओलक ।

ओइदिनसँ सामा घोषणा कएलनि – भाइ संकटसँ उबारलक तँए युग–युगधरि भाइकेँ लोक मोन राखत आ दुर्गंजनसभके अन्त होइत रहत ।

■ दोसर कथा :

मद्र देशक राजा छल लक्ष्मण सेन । हुन्का दू गोट संतान, एकटा चकेवा (पुत्र) आ दोसर खड़चि (पुत्री) । दुनू भाइ–बहिनमे अगाध सिनेह छल ।

मोरंगके नरेश रहए रतिनाह । हुन्का दू गोट पुत्री, एकटा सामा आ दोसर तारा । दुनू बड सुन्दरी आ सुशील छलीह। रतिनाहके मन्त्री रहए चुगला । चुगला कामी, लोभी आ षडयन्त्रकारी रहए । ओ मोरङ्ग राजकें हासिल करबाक मनसुब्बा पोसने रहए । मोरङ्ग राजकेँ हासिल करबाक लेल ओ युक्ति लगबए जे कहुनाक हम सामा नइ तँ तारासँ बियाह कऽ ली । राजाकेँ बेटा नइ भेलाक कारणे राजगद्दी तँ कोनो जमाएकें भेटतै । तँ एकटा हम अपना भऽ जाएब आ दोसर कोनो अकलेल–बकलेलकेँ साढ़ू बना लेब । आरामसँ राज सुख–भोग करब । चुगलासब जतनसँ हारि गेल मुदा रतिनाह ओकर योजनाके अनुकूल नइ भेल । अगुताक ओ ताराकेँ अपहरण कऽ कऽ वृंदावनमे नुका रखलक ।

संयोगसँ चकेवा ओहि समय वृंदेवनमे भ्रमण कऽ रहल छलाह । ओ वंदी युवतीकेँ देखलनि । पहरेदार सबकेँ परास्त कऽ कऽ ताराकेँ मुक्त करा मोरंग पठबा देलक ।

रतिनाह चुगलाके सब षडयन्त्र जानि गेल आ चुगलाकेँ देश निकाला कऽ देलनि । रतिनाह, चकेवासँ प्रभावित भेल आ एक जमाएमे होबऽवला सब गुण देखलक । रतिनाह अपन बेटी सामाक वियाह चकेवासँ करबाक लेल प्रस्ताव मद्र देश पठौलक । बात–चित आगा बढ़ल । सामा आ चकेवाक वियाह निश्चित भऽ गेल । ई समाचार जखने चुगला सुनलक तँ ओकरा भितरे–भितर खंउत फेक देलक । ओ आवेशमे आबि चकेवाक बहिन खड़चिकेँ अपहरण कऽ लेलक । चकेवा बहिनकेँ संधान केलक आ एकबेर फेरसँ चुगलाक पहरेदार सबकेँ परास्त कऽ कऽ अपन बहिनकें मुक्त करा लेलक ।

आब चुगला भेदके प्रयोग कएलक । चुगला मद्र आ मोरंग दुनू देशमे गलत प्रचार कऽ देलक । मद्रमे अफबाह पसरल जे सामा आन्हर अइ । राजा आन्हरसँ चकेवाकेँ बियाहि रहल छथि । मोरंगमे चर्चा होबऽ लागल जे चकेवा बताह अइ । राजा बताहसँ सामाकें बियाहि रहल छथि । स्थिर भेल संबन्ध टूट–टूट पर आबि गेल ।

चकेवाक बहिन खड़चि प्रयास कऽ कऽ चकेवा आ सामाकेँ दश लोकक बीच उपस्थित कराबैए । सब लोक अपना आँखिसँ असली बात जानि जाइए ।

आब चुगला पगला जाइए आ सबहक सामने खड़चिकें उठाकऽ पड़ाइए । लोकसब ओकरा खिहारैए । चुगला खड़चिकें वृंदावनमे लऽ जाऽ कऽ बान्हिकऽ वृंदावनमे आगि लगा दैए । चकेवा आ लोक सब खड़चिकें मुक्त करैए आ चुगलाकेँ ओहि आगिमे झरकाकऽ अपाङ्ग कऽ दैए।

३. सामा – खेल (परम्परा आ विधान) : सामा–चकेवाक खेल कार्तिक शुक्ल द्वितिया माने भरदुतियासँ लऽकऽ कार्तिक शुक्ल पूर्णिमाधरि चलैत अछि । अर्थात, चौदह रातिक खेल ।


कार्तिक शुक्ल द्वितिया माने भरदुतियाके ओरियाओल जाइत अछि – चिकनी माटि, खढ़, राड़ी, खरही, सन, संठी, सुतरी, आदि । अइ सब सामग्रीसबके प्रयोग करैत भरदुतियासँ लऽकऽ छठिक खरनाधरि सामा, चकेवा, चुगला, चौकीदार, खजन-चिड़ैया (दोसर कथा – खड़चिसँ भऽ सकैए अपभ्रंस भऽ खजन भऽ गेल हो), वृंदावन, ढोलिया, भरिया, सतभइयां चिड़इ, भमरा, हीरामन सुग्गा, झाँझी कुत्ता, आदि बनाओल जाइत अछि । तब मूर्तिकें सुखऽके लेल छोड़ि देल जाइत अछि । मूर्ति सुखा गेलापर मूर्ति रङ्गल जाइत अछि । मूर्तिमे उजर रङ्ग देबाक लेल अरवा चउरक पिठारके प्रयोग कएल जाइत अछि । तेनाहिते विभिन्न सामग्रीके प्रयोगसँ महिला सब इच्छा अनुसार आ आवश्यकता अनुसार लाल, हरियर, पियर, आदि रङ्गसब भरैत अछि मूर्तिमे । बादमे मूर्तिकेँ वस्त्र पहिराओल जाइत अछि । गहना बनाकऽ पहिराओल जाइत अछि । टिकुली, जुटी, लाठी, मुरेठा, आदिसँ सजाओल जाइत अछि ।

ई गतिविधि सब मिथिलाक महिला भितर भेल अंतर्निहित क्षमता जेना – गायन, मञ्चन, मूर्तिकला, रंगरोगन कला, आदिके प्रति भेल चाख आ कौशलकेँ देखबैत अछि ।

डोमक ओहिठामसँ बाँसक चङ्गेरा मंगा सब मूर्तिकें चङ्गेरामे राखल जाइत अछि । कुंहार ओहिठामसँ सखारी आएल रहैत अछि । सखारीमे नवका चूड़ा–गुड़ राखल गेल । डालामे बरैत दीप रहैए।

जखने रातिक पहिल–दोसर पहरक बीचमे पुरुषसब भोजन–भात कऽ ओछानिपर सुति रहैए, महिला–मंडलीसब डाला लऽ घरसँ बहराइत छै । तखन ओ सब घरसँ गीत गबैत बहराइए सामाकेँ शीत चटाबऽ –

डाला लऽ बहार भेली, बहिनो से फल्लिं बहिनो
फलाँ भइया लेल डाला छीन, सुन गे राम सजनी

टोलक कोनो फलि जगह पर भेटैत छै । जोतलहा खेतमे चारुभरसँ जगमग इजोत करैत सामा–दलसब अबैए । दृश्य देख एना लगैत रहैए जे सब दिससँ मशाल लेने कोइ आबि रहल हो । जोतलहा खेतमे डालाक पथार – सामाक मेला लगि जाइए ।

गीतनाद चलैए । पहिने गोसाउनिक गीत । तकराबाद क्रिया (सामाक भोजन, मूंह–हाथ धोआओन, पानि पिआओन, आदि) अनुरूप गीतसब चलैए । संगहि निरंतर गीतनादक अनुरूप क्रिया–प्रतिक्रिया होइत रहैए । बीचमे डाला फेरल जाइत अछि । खेतमे सामा–चकेवाकेँ शित आ दुबि खुआओल (चटाओल) जाइत अछि । नव बालिसँ सामा–चकेवाकेँ पुजन कएल जाइत अछि ।

आ तब वृंदावनमे लागल आगि मिझाओल जाइत अछि । खल पात्र चुगलाकें मुह झौँसल जाइत अछि, मोंछ नोचल जाइत अछि । आ जब ई सब करैत ओ सब थाकि जाइए तँ कने देर बतकही करैए । हंसी चौल होइए । अते करैत राति बेसी भऽ जाइए । ओ सब डाला उठा लैत अछि । मोन होइए तँ गबैए नइ तँ जल्दी–जल्दी घर चलि अबैए । घर पहुँचलाक बाद डालाकें बाहरे आंगनेमे शितमे राखि दैत अछि । माने एक रातिक खेल खतम भऽ जाइए ।

ई प्रक्रिया सब रातिक पहिले पहरसँ शुरु भऽ जाइए ।

बहिन हजाम (लौआ) मार्फत भाइकेँ पत्र पठाएल करैत अछि । भाइ पत्र पबैत सिन्दुर आ टिकुली लऽ बहिन ओइठाम अबैए। बहिन कहैत अछि, भैया हमरा भगवान बड कुछ देने अछि, धन–सम्पति बड अछि, बस अहाँ हमर सोहागकेँ रक्षा करब करैत रहब । उपर्युक्त गीत भाइ–बहिन शाश्वत प्रेमकेँ दरसाबैत अछि —

कानि खिजि चिठिया लिखौलनि
फलाँ बहिनो भैजौलनि हजामका हाथ
चिठिया दिहन्हि हो भैया, फलाँ भैयाके हाथ
भेला घोडा पर सवार
बाबाक सम्पतिया हो भैया
भतिजबा के ओ आस
हम परदेशिन हो भैया
सिन्दुरवा केर हो आस

अन्तिम राति भाइक उपस्थिति रहैए। भाइकेँ भेटैत अछि एकटा महत्वपूर्ण काज । ठेहुन लगा सामा–चकेवाके प्रतिमा फोडऽके काज । सामा–चकेवाक प्रतिमा भाइके हाथे फोड़एबाक अर्थ ई मानल जाइत अछि जे भाइए सामा–चकेवाकें चिड़इसँ मनुखक योनिमे आपस अनने रहए । तँए बहिन भाइके हाथे सामा–चकेवाके प्रतिमा फोडबैत अछि । भाइ मेहनत कएने रहैए तँए हुन्का खुआओल जाइत अछि सखारीमे भेल चूड़ा–गुड़ ।

वृंदावनमे लागल आगि मिझाओल जाइत अछि । चुगलाकेँ झरकाओल जाइत अछि, मारल जाइत अछि । चुगलाकेँ गारि देल जाइत अछि । गीतसँ सराबोर भेल अद्भुत दृश्य रहैछै तखनुक –

रे चुगला तोहर ई कोन बानि
गारिसँ खसलौ निछक्के पानि
चुगला करए चुगली, बिलैया करए म्याउ
चुगलाके जिब हम नोची–नोची खाउ

चाहए …

धान धान धान छै
भैया कोठी धान छै
भैया मुंह पान छै
चुगला कोठी भूस्सा छै

प्रतिकात्मकरूपमे भैया कोठी धान कहि भाइक समृद्धिक लेल कामना कएल जाइत अछि आ चुगला कोठी भुसा कहि चुगलाकेँ गारि आ तिरस्कार कएल जाइत अछि । सम्पन्नताक संग भाइक वीरताक गान सेहो होइए –

वृन्दावनमे आगि लागै
कोइ ने मिझावे हे
हमर भैया फलना भैया
दौड़ि–दौड़ि मिझाबे हे

अंततः राति बेसी भऽ जाइए आ खेलो खतम । महिला दल झुम्मरि, समदाउन गबैत अपन–अपन घर आबि जाइए। सामा–चकेवाक प्रतिमा जे घर आबि जाइए तकरा धियापुताकेँ खेलऽ लेल राखि देल जाइए वा नइ तँ जलमे भसा देल जाइए । आ चुगलाके प्रतिमा गन्दा भेल जगहपर फेक अबैए। सामा–चकेवाक प्रतिमा विसर्जन बेर बड मर्मस्पर्शी गीत रहैए –

सामा हे ! चकेबा हे !
फेरो अबिह हे !

साम चके–साम चके अबिह हे
जोतलाहा खेतमे बसिह हे
ढेपा फोरि–फोरि खइह हे

अहिठाम सामाकेँ फेरो अगिला साल आबि, जोतलाहा खेतमे बैसऽके लेल कहल जाऽ रहल अछि । सँगहि ढेपा फोरि–फोरि खाइके लेल । ई बात कोनो मनुखक लेल नइ बल्कि सामा-चकेवा लेल छइ जे चिड़इ अछि । माने अहाँ दुनूगोटे (सामा–चकेवा) तँ चिड़इ रहब – त अबिहऽ जोतलाहा खेतमे बसिहऽ आ ढेपा फोड़ि खइह । कातिकमे किछ अगता धान सब काटि लेलाक बाद खेतकें जोतल गेल रहैत अछि – कोबी, अबु, रसुन, आदि रोपऽ कऽ लेल । ढेपामे भेटत की– ढेपामे भेटत चिडचिड़इके आहार (चाली वा किरा) । तँए ढेपा फोरि–फोरि खइह हे।


अन्तमे, आङ्गनमे आबि हाथ मुह धोती अछि, घर गोसाइकें प्रणाम करैत याचना करैत अछि –

जाबत जीबी
ताबत सामा खेलाइ

फेर कार्तिक शुक्ल द्वितियाक प्रतीक्षा …

४. निष्कर्ष : सामा–चकेवा नैहर आ सासुर बीच भेल श्रद्धा एवं प्रेमके अद्भुत प्रतीक छी । अइमे भाइ बहिनक निश्छल एवं शाश्वत सम्बन्ध नजरि पड़ैत अछि ।

भाइ (माने — समाज बनाबऽ आ बचाबऽबला, असहायके सहाय बनऽबला, सत्ताके सही बाट धराबऽबला, आदि)क लेल शुभे हो – शुभे मुदा समाजमे आपसी सद्भाव बिगारऽबला … दूर्जन … चाहए उच्छृंखल प्रवृतिक लोक (चुगला)क लेल फटकार, मारि–गारि, आदिक व्यवस्था । सही माइनेमे एहन दुष्ट सभक लेल एहने कठोर दण्डक व्यवस्था होएबाक चाही ।

मिथिलाक नारी भितर भेल अन्तरनिहित क्षमता सेहो देखार होइत अछि एहि गतिविधिमे । तहिना जिव उपर दया–माया, मौसम (ऋतु) सम्बन्धी ज्ञान, आदि सब थाह लगैए। डोम, कुम्हार, हजाम, आदि माने समाजमे विभिन्न लोकक बीच अन्तर–सम्बन्ध बुझना पड़ै छै।

किछु प्रश्न सब :—

१. पहिल आ दोसर कथामध्ये अहाँके कोन सुनल रहए? पहिल आ दोसर कथामे अहाँकें की सामान आ अन्तर समझ आएल?

२. प्रेमके प्रतिक कहाबैबला, गोपी सङ्ग रास रचाबऽवला श्रीकृष्ण स्वम किए अपन बेटीक प्रेम नहि जानि सकल? दुनियाँकें कोइ नइ जनैत अछि, मुदा दुनियाँकें जानऽवला श्रीकृष्ण स्वयंम किए एकटा चुगलाके बातमे आबि गेल ?

३. भाइ, सामा–चकेवाक प्रतिमा ठेहुनसँ किए फोड़ि रहल छथि ? सामान्यता ओ अपन हाथोटासँ फोड़ि सकैत रहए ने ?

४. अपना भाइकेँ गुड़–चुड़ा खुआ रहल छथि मुदा सामा–चकेवाकेँ किए शीत चटा रहल छथि आ दूबि खुआ रहल छथि ?

■ सम्पादन : नारायण मधुशाला

■ श्रोत : कुनाल, खुशीलाल यादव, अनिता देवी यादव आ सामाजिक संजाल

नारायण मधुशाला

तेज नारायण यादव, सिरहा । न्यूज रिपोर्ट । ilovemithila.com । । कवि। गीतकार

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