शम्भु श्री (Shambhu Shree) मैथिली गजल (Maithili Ghazal) लेल बेसी जानल जाइत छथि। प्रेमील गजल लिखब हिनक मूल विशेषता छी। गजलकार शम्भू श्री/ Sambhu Shree केँ एकपर एक गजल।
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गजल -1 : लागल तीर करेजामे भोरके बात कहैछी
प्रितक राहमे आएल मोड़के बात कहैछी
लागल तीर करेजामे भोरके बात कहैछी ॥
ओना तँ घायल भेले छलौ आँखिक काँजरेसँ,
जान लैबला गुलाबी ओ ठोरके बात कहैछी ॥
सौन्दर्यताक पर्याय ओ श्याम वरण होइतो,
फिका ओकर आगु सब गोरके बात कहैछी ॥
गणितसँ घटाऊ आ भाग हटेनाई मुस्किल,
दिलके हिसाबमे मात्र गुणा-जोड़के बात कहैछी ॥
‘माधुरी’ आओर तँ किछु नै दिले लकऽ गेल,
‘शम्भु’ के ओहेन चितचोरके बात कहैछी ॥
© गजलकार: शम्भु श्री
Maithili Love Ghazal by Shambhu shree
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गजल -2 : विश्वास नइँ त देखु आँखिके दर्पणमे
चमचम चमकैत मोनक गगनमे अँही चियै,
विश्वास नइँ त देखु आँखिके दर्पणमे अँहि चियै॥
ताजमहल त केवल भौतिक नश्वर शाँ जहाँके,
मुदा हमर अत्मिक प्रेमक भवनमे अँहि चियै ॥
अहाँके स्मरणसँ उमङ संचार भ’ जाएत अछि,
हमर हरेक पल शुभ लगनमे अँही चियै ॥
एकबेर अपन आत्मासँ पुछु विश्वास भ’ जाएत,
हमर निश्छल कोमल मनमे अँहि चियै ॥
माधुरी जिवनमे नै चियै अलग बात मुदा,
शम्भुके धड़कन चलाबैबला पवनमे अँहि चियै ॥
शम्भु श्री
Genre : ( Emotional, Love Ghazal in Maithili )
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गजल 3 : प्रीय संगक होरी किछु खास भ जाय
वसन्त चढिते होरीके आभास भ जाय ।
प्रीय संगक होरी किछु खास भ जाय ॥
मन रंगीन होयते दुरियो समाप्त मिता ।
नहित अपनो अंगना प्रवास भ जाय ॥
केकरो आगमनसँ अन्हरियो राति ।
पुर्णिामा दिनके फागुनक मास भ जाय॥
कियो आबैत अछि जिनगीमे दबाई बनि ।
नजर पडिते हर पीडा वरदास भ जाय ॥
माधुरीके लाले-लाल रंगल रुप देखि ।
शम्भु चम्कैत सुन्दरताके दास भ जाय॥
शम्भु श्री
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गजल 4 : राति सपनामे एकटा चान आएल छल
राति सपनामे एकटा चान आएल छल।
घुरि देहमे उडल प्राण आएल छल ॥
बेर-बेर अपन मुस्कानकेँ पिया-पिया कऽ।
हमर दिल चोराबएबला बेइमान आएल छल॥
पाएरक पायल छमछम बजाबैत-बजाबैत ।
रसेरस केअो दिलके दलान आएल छल ॥
एके बेर नहि बेर-बेर घाइल बनाबएबला ।
ककरो नजरक धरगर बाण आएल छल ॥
माधुरिक आगमनक पुर्व आभाससँ ।
शम्भुके कानमे सुमधुर गान आएल छल॥
शम्भु श्री
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गजल 5: विषधर नैनसँ प्रेमक पाठ पढेलक मिता
विषधर नैनसँ प्रेमक पाठ पढेलक मिता ।
आजुक साँझ शराबी बनेलक मिता ॥
रसे रस जतेक समीप आबैत गेल ओ ।
ओते ओते कलेजोक चलि बढेलक मिता॥
ओकर स्पर्शसँ हमर रोइयाँ काँटो काँट भेल ।
ओहो अपन सबकुछ गमेलक मिता ॥
धह धह धधकैत अपन यौवनक आगिसँ ।
ई संगीन महफिल पलमे जरेलक मिता ॥
माधुरी नशा टूटल तऽभोर भऽ गेल छल।
शम्भु फेरसँ एक घोँट लगेलक मिता ॥
शम्भु श्री
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गजल 6 : परिचितो अन्जान बनैय कारण कोरोनाके
परिचितो अन्जान बनैय कारण कोरोनाके ।
अपनो लोग दुर भगैय कारण कोरोनाके ॥
मानव अस्तित्व रक्षाके संघर्षक युद्धोके बेर ।
चारोभर मानवता मरैय कारण कोरोनाके ॥
बिज्ञान आ शक्तिशाली राष्ट्रक निरिहताके ।
प्रकृति ईतिहाँस रचैय कारण कोरोनाके ॥
उपचार जेकर प्रथम कर्तव्य इ दुनियामे ।
ओ दोसर भगवानो डरैय कारण कोरोनाके ॥
माधुरी साउनक वर्षा जका रुकैके नाम नहि ।
शम्भु मृतक संख्या बढैय कारण कोरोनाके ॥
शम्भु श्री के छथि ? [About Shambhu Shree]
- लेखनविधा: गजल
- मूल नाम: शम्भु प्रसाद यादव
- उपनाम: शम्भु श्री
- पता: बरही विरपुर- 5 , सप्तरी